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धूनी-नाथ  : पुं० [ष० त०] धुनी (नदी) के स्वामी, सागर।
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धूँआँ  : पुं०=धूआँ।
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धूँका  : पुं०=धोखा।a
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धूँध  : स्त्री० १. =धुँध। २. =धोखा।a
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धूँधना  : स० [हिं० धूंध] धोखा देना।
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धूँधर  : स्त्री० [हिं० धुंध] १. धुंध। २. उक्त के फलस्वरूप होनेवाला अँधेरा।a वि०=धुँधला।
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धूँधला  : वि०=धुँधला।a
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धूँसना  : अ० [?] जोर का शब्द करना। उदा०—प्रबल वेग सों धमकि धूँसि दसहूँ दिसि दूसहि।—रत्नाकर।b स० [सं० ध्वंसन] १. नष्ट या बरबाद करना। २. मारना-पीटना।
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धूँसा  : पुं०=धौंसा।a
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धू  : वि० [सं० ध्रुव] स्थिर। अचल।a पुं० १. ध्रुव तारा। २. राजा उत्तानपाद का पुत्र जो प्रसिद्ध ईश्वर-भक्त था। ३. गाड़ी का धुरा।
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धूआँ-कश  : पुं० [हिं० धूआँ+फा० कश=खींचना] भाप के जोर से चलनेवाली नाव या जहाज। अगिनबोट। (स्टीमर)
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धूआँदान  : पुं० [हिं० धूआँ+फा०+दान] छत आदि में बना हुआ वह छेद या नल जिसमें से होकर घर के अन्दर का धूआँ बाहर निकलता है। चिमनी।
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धूआँधार  : वि० [हिं० धूआँ+धार] १. धूएँ से भरा हुआ। २. धूएँ की तरह के गहरे काले रंगवाला। ३. तड़क-भड़क वाला। ४. खूब जोरों का। घोर। प्रचंड। ५. मान, मात्रा आदि में बहुत अधिक। क्रि० वि० निरंतर और जोरों से। जैसे—धूआँधार गोले या पानी बरसना।
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धूक  : पुं० [सं०] १. वायु। २. काल। वि० चालाक। धूर्त। पुं० [फा० दूक=तकला] कलाबत्तू बटने की लोहे की गोल पतली सीख।
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धूकना  : अ० [हिं० ढुकना] १. किसी ओर बढ़ना या झुकना। २. दे० ‘ढुकना’।b
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धूजट  : पुं०=धूर्जटि (शिव)।b
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धूजना  : अ० [सं० धूत] १. हिलना। २. काँपना।
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धूत  : वि० [सं०√धू (कंपन)+क्त] १. काँपता, थरथराता या हिलता हुआ। कंपित। २. जिसे डाँटा-डँपटा या धमकाया गया हो। ३. छोड़ा या त्यागा हुआ। त्यक्त। वि०=धौत। उदा०—धो दिया श्रेष्ठ कुल-धर्म धूत।—निराला।a वि०=धूर्त।a
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धूतना  : स० [सं० धूर्त] १. किसी के साथ धूर्त्तता करना। २. किसी को ठगना। ३. धूर्ततावश किसी की कोई चीज नष्ट करना। उदा०—अवधू ह्वै कै या तन धूतौं, बधिका ह्वै मन मारूं।—कबीर।
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धूत-पाप  : वि० [ब० स०] जिसके पाप धुलकर दूर या नष्ट हो चुके हों।
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धूत-पाया  : स्त्री० [ब० स०, टाप्] काशी की एक प्राचीन नदी, जो पंचगंगा घाट के समीप गंगा में मिली थी।
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धूता  : स्त्री० [सं० धूत+टाप्] पत्नी। भार्या।
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धूताई  : स्त्री०=धूर्तता।a
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धूतार  : वि०=धूर्त।
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धूति  : स्त्री० [सं०√धू+क्तिन्] १. हिलते रहने या हिलने देने की अवस्था या भाव। २. हठयोग में शरीर शुद्ध करने की क्रिया।
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धूती  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की चिड़िया।
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धूतुक  : पुं०=धूतू।
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धूतू  : पुं० [अनु०] १. कल-कारखाने आदि की सीटी का शब्द। २. तुरही। ३. नरसिंहा।
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धूधू  : पुं० [अनु०] वस्तुओं के जलने के समय होनेवाला धू-धू शब्द।
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धून  : वि० [सं०√धू+क्त, नत्व] कंपित। पुं०=दून।a
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धूनक  : वि० [सं०√धू+णिच्, नुक्+ण्वुल्—अक] १. हिलाने-डुलानेवाला। २. चालाक। धूर्त। पुं० सरल या साल का गोंद। राल।
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धूनन  : पुं० [सं०√धू+णिच्, नुक्+ल्युट्—अन] १. हवा। २. कंपन। ३. क्षोभ।
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धूनना  : स० [हिं० धूनी] १. आग में कोई ऐसी वस्तु छोड़ना जिसके जलने से सुगंधित धूआँ निकले। २. उक्त प्रकार के धूएँ से कमरा, घर आदि सुवासित करना। धूनी देना। स० दे० ‘धुनना’।
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धूना  : पुं० [हिं० धूनी] आसाम आदि की पहाड़ियों पर होनेवाला एक तरह का गुग्गुल की जाति का बड़ा पेड़। इसकी छाल आदि से वारनिश बनाई जाती है।
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धूनी  : स्त्री० [सं०√धू+क्तिन्, नत्व] हिलने की क्रिया। कंपन।
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धूनी  : स्त्री० [हिं० धूआँ या धूईं] १. वह आग जो साधु लोग या तो ठंढ से बचने के लिए शरीर को तपाकर कष्ट पहुँचाने के लिए अपने सामने जलाए रखते हैं। मुहा०—धूनी जगाना, रमाना या लगाना=(क) साधुओं का अपने सामने धूनी जलाकर तपस्या करना। (ख) अपना शरीर तपाने या अपना वैराग्य प्रकट करने के लिए साधु होकर या साधुओं की तरह अपने सामने धूनी जलाये रखना। २. सुगंधित धुआँ उठाने के लिए गूगल, धूप, लोबान आदि गंध दृव्य जलाने की क्रिया। जैसे—ठाकुर जी की मूर्ति के आगे की धूनी। क्रि० प्र०—जलाना।—देना। ३. धूआँ उठाने के लिए कोई चीज जलाने की क्रिया। जैसे—मिरचों की धूनी देकर किसी के सिर पर चढ़ा हुआ भूत भगाना। क्रि० प्र०—देना।
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धूप  : पुं० [सं०√धूप (तपाना)+अच्] १. कोई ऐसा गंध द्रव्य या सुगंधित पदार्थ जलने पर सुगंधित धूआँ निकलता हो। जैसे—अगर, चन्दन का चूरा, लोबान आदि। २. देव-पूजन, वायु-शुद्धि, सुगंध-प्राप्ति आदि के लिए उक्त प्रकार के पदार्थों को जलाने पर उनमें से निकलने वाला सुगंधित धूआँ। मुहा०—धूप देना=उक्त उद्देश्यों की सिद्धि के लिए सुगंधित पदार्थ जलाना। ३. कई प्रकार के सुगंधित द्रव्यों को कूटकर कड़ी लेई के रूप में बनाया हुआ वह पदार्थ जो सुगंधित धुआँ उत्पन्न करने के लिए जलाने के काम आता है। पद—धूप-बत्ती। (देखें) क्रि० प्र०—जलाना। ४. चीड़ या धूप-सरल नामक वृक्ष जिसमें से गंधाबिरोजा निकलता है। स्त्री० [सं० धूपः, प्रा० धुप्पा,पा० पं० धुप्प] दिन के समय होनेवाला सूर्य का वह प्रकाश जिसमें गरमी या ताप भी होता है। आतप। घाम। मुहा०—धूप खाना या लेना=ऐसी स्थिति में होना कि शरीर पर धूप पड़े। शरीर में गरमाहट लाने के लिए धूप में बैठना। (किसी चीज को) धूप खिलाना, दिखाना या लगाना=कोई चीज ऐसी स्थिति में रखना कि उस पर धूप पड़े या लगे। जैसे—बरसात के बाद गरम कपड़ों को धूप खिलानी या दिखानी पड़ती है। धूप चढ़ना या निकलना=सूर्योदय होने पर प्रकाश का बढ़ना और फैलना। घाम निकलना। (किसी चीज पर) धूप पड़ना या लगना=सूर्य के प्रकाश में पहुँचने पर धूप के प्रभाव से युक्त होना। धूप में बाल या चूंड़ा सफेद करना=बिना कुछ अनुभव या जानकारी प्राप्त किये जीवन का बहुत-सा भाग बिता देना। (प्रायः नहिक या निषेधात्मक रूप में प्रयुक्त) जैसे—हमने धूप में बाल नहीं सफेद किये हैं, जो तुम्हारी इन बातों में आ जायँ।
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धूपक  : पुं० [सं०] धूप, अगरबत्ती आदि बनाने तथा बेचनेवाला।
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धूप-घड़ी  : स्त्री० [हिं० धूप+घड़ी] एक प्रकार का यंत्र, जिसमें बने हुए गोल चक्कर के बीच में गड़ी हुई कील की परछाईं से समय जाना जाता है।
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धूप-छाँह  : स्त्री० [हिं० धूप+छाँह] वह रंगीन कपड़ा, जिसमें एक ही स्थान पर कभी एक रंग और कभी दूसरा रंग दिखाई देता है। विशेष—जब किसी कपड़े का ताना एक रंग का और बाना दूसरे रंग का होता है, तब उसमें यह बात आ जाती है।
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धूपदान  : पुं० [सं० धूप-आधान] [स्त्री० अल्पा० धूपदानी] १. धूप नामक सुगंधित द्रव्य रखने का डिब्बा या बरतन। २. वह पात्र जिसमें धूप, राल आदि सुगंधित द्रव्य रखकर सुगंधित धूएँ के लिए जलाए जाते हैं। ३. वह पात्र जिसमें जलाने के लिए धूप-बत्ती खोंसी, रखी या लगाई जाती है।
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धूपदानी  : स्त्री० [हिं० धूपदान] छोटा धूपदान।
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धूपन  : पुं० सं०√धूप+ल्युट्—अन] [वि० धूपित] धूप आदि के धुएँ से सुवासित करने की क्रिया या भाव।
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धूपना  : अ० [सं० धूप्=गरम होना] किसी काम के लिए इधर-उधर आने-जाने में परेशान होना। जैसे—दौड़ना-धूपना। स० [सं० धूपन] सुगंधित धुएँ के लिए धूप या और कोई गंधद्रव्य जलाना।
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धूप-पात्र  : पुं० [ष० त०] १. धूप रखने का बरतन। २. दे० ‘धूप-दान’।
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धूप-बत्ती  : स्त्री० [हिं० धूप+बत्ती] मसाला लगी हुई सींक या बत्ती जिसे जलाने से सुगंधित धुआँ उठकर फैलता है।
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धूप-वास  : पुं० [तृ० त०] [भू० कृ० धूप-वासित] स्नान कर चुकने के बाद सुगंधित धुएँ से शरीर, बाल आदि बासने का कार्य।
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धूप-वासित  : भू० कृ० [तृ० त०] धूप आदि सुगंधित दृव्यों के धूएँ से बासा अर्थात सुगंधित किया हुआ।
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धूप-वृक्ष  : पुं० [मध्य० स०] सलई या गुग्गुल का पेड़ जिसके गोंद से धूप आदि सुगंधित द्रव्य आदि बनाये जाते हैं।
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धूपायित  : वि० [सं०√धूप+आय्+क्त]=धूपित।
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धूपित  : वि० [सं०√धूप+क्त] १. धूप के सुगंधित धुएँ से सुवासित किया हुआ। धूप के धूएँ में बासा हुआ। २. दौड़ने-धूपने के कारण थका हुआ। शिथिल और श्रांत।
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धूम  : पुं० [सं०√धू (कंपन)+मक्] १. आग का धुआँ। २. कुछ विशिष्ट औषधियों आदि को जलाकर उत्पन्न किया हुआ वह धूआँ, जो कुछ रोगों में रोगियों के शरीर या पीड़ित अंग पर पहुँचाया जाता है। ३. अजीर्ण या अपच में आनेवाला धुँआयँध डकार। ४. धूमकेतु। पुच्छलतारा। ५. उल्कापात। ६. एक प्राचीन ऋषी का नाम। स्त्री० [अनु०] १. वह स्थिति, जिसमें बहुत से लोग उत्साहपूर्वक प्रसन्नता व्यक्त करते हुए इधर-उधर आते-जाते, दौड़ते-फिरते और हो-हल्ला मचाते हों। उत्सवों, त्योहारों आदि के समय जन-समूह की उल्लासपूर्ण चहल-पहल। जैसे—आज सारे भारत में स्वराज्य दिवस की धूम है। २. उत्सवों, मेलों, समारोहों आदि के संबंध में पहले से होनेवाला उत्साहपूर्ण आयोजन, ठाठ-बाट और तैयारी। जैसे—शहर में अभी से राष्ट्रपति के आने की धूम है। पद—धूम-धाम। ३. उक्त प्रकार के कामों या बातों के संबंध में लोगों में चारों ओर होनेवाली चर्चा। जैसे—आज शहर में उनकी बारात की सबेरे से ही धूम है। मुहा०—(किसी बात की) धूम मचना=किसी बात की चर्चा चारों ओर फैल जाना। ४. ऐसा उत्पात, उपद्रव, उछल-कूद या धींगा-मस्ती, जिसमें हो-हल्ला भी हो। जैसे—लड़के दिनभर गलियों में धूम मचाते रहते हैं। ५. कोलाहल। शोर। हो-हल्ला। जैसे—निम्न कक्षाओं के लड़के बहुत धूम करते हैं। क्रि० प्र०—मचना।—मचाना। विशेष—पुरानी हिन्दी तथा स्थानिक बोलियों में कहीं कहीं इस शब्द के साथ ‘डालना’ क्रिया का भी प्रयोग होता है। स्त्री० [देश०] तालों में होनेवाली एक प्रकार की घास।
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धूमक  : पुं० [सं० धूम+कन्] १. धूआँ। २. एक प्रकार का साग।
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धूमक-धैया  : स्त्री० [हिं० धूम] १. ऐसी उछल-कूद और उपद्रव या हो-हल्ला जो अशिष्टतापूर्ण हो और इसी लिए अच्छा न लगे। क्रि० प्र०—मचना।—मचाना। २. दे० ‘धूम-धाम’।
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धूम-केतन  : पुं० [ब० स०] १. अग्नि। आग। २. धूमकेतु। पुच्छलतारा।
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धूम-केतु  : पुं० [ब० स०] अग्नि, जिसका पताका धूआँ है २. शिव का एक नाम। ३. रावण की सेना का एक राक्षस। ४. ऐसा घोड़ा जिसकी दुम पर भौंरी हो। (ऐसा घोड़ा ऐबी या दूषित समझा जाता है)। ५. एक प्रकार का केतु या तारा, जिसमें पीछे की ओर दूर तक झाड़ू की तरह बहुत लंबी दुम लगी होती है। पुच्छलतारा। (कामेट)
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धूम-गंधिक  : पुं० [धूम-गंध, ब० स०, इत्व, धूमगन्धि+कन] रोहिष तृण। रूसा घास।
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धूम-ग्रह  : पुं० [मध्य० स०] राहू नामक ग्रह।
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धूमज  : वि० [सं० धूम√जन् उत्पत्ति+ड] धूएँ से उत्पन्न। पुं० १. बादल या मेघ जो धुएँ से उत्पन्न माना गया है। २. मुस्तक। मोथा।
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धूम-जांगज  : पुं० [सं० धूमज-अंग ष० त०, धूमजांग+जन्√ड] नौसादर।
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धूम-दर्शी (र्शिन्)  : पुं० [सं० धूम√दृश (देखना)+णिनि] वह व्यक्ति जिसे आँखों के दोष के कारण सब चीजें धुँधली दिखाई देती हैं।
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धूम-धड़क्का  : पुं० [हिं० धूम+अनु० धड़क्का] आनंद, प्रसन्नता, हर्ष आदि के कारण होनेवाली चहल-पहल और हो-हल्ला।
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धूम-धर  : पुं० [ष० त०] अग्नि। आग।
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धूम-धाम  : स्त्री० [हिं० धूम+धाम (अनु०)] उत्साह तथा उल्लास से युक्त होनेवाला ऐसा आयोजन या तैयारी, जिसमें खूब चहल-पहल और ठाठ-बाट हो। पद—धूम-धाम से=ठाठ-बाट और सज-धज के साथ। जैसे—धूम-धाम से जलूस, बरात या सवारी निकलना।
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धूमधामी  : वि० [हिं० धूमधाम] १. धूम-धाम से काम करनेवाला। २. धूम-धाम या आडम्बर से युक्त। जैसे—धूमधामी आयोजन या समारोह। ३. नटखट। उपद्रवी।
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धूम-ध्वज  : पुं० [ब० स०] अग्नि। आग।
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धूम-नेत्र  : पुं०=धूम्र-नेत्र।
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धूम-पट  : पुं० [ष० त०] १. धूएँ की वह दीवार, जो युद्ध क्षेत्र में विपक्षियों की नजर से अपनी तोपें आदि छिपाने के निमित्त खड़ी हो जाती थी। २. वास्तविक स्थिति या तथ्य छिपाने के लिए उसके सामने खड़ी की जानेवाली कोई आड़ या परदा। (स्मोक स्क्रीन)
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धूम-पथ  : पुं० [मध्य० स०] १. वह रास्ता जिससे किसी स्थान का धूआँ बाहर निकलता हो। धुआँरा। २. दे० ‘पितृयान’।
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धूम-पान  : पुं० [ष० त०] १. साधुओं आदि का आग के कुएँ में पड़े रहना। २. सुश्रुत के अनुसार कुछ विशिष्ट प्रकार की औषधियों का धुआँ जो नल द्वारा रोगी को सेवन कराया जाता था। ३. तमाकू, सुरती आदि को सुलगाकर (नशे आदि के लिए) बार-बार खींचकर मुँह में लेना और बाहर निकालना। तमाकू, बीड़ी, सिगरेट आदि पीना।
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धूम-पोत  : पुं० [मध्य० स०] धूएँ या भाप की सहायता से समुद्र में चलनेवाला आधुनिक ढंग का जहाज। धूआँ-कश
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धूम-प्रभा  : स्त्री० [ब० स०] नरक, जो सदा धुएँ से भरा रहता है।
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धूम-यान  : पुं० [ब० स०] पुराणानुसार,पृथ्वी के नीचे की ओर का वह मार्ग जिससे होकर पापियों की आत्माएँ नीचे या अधःलोक की ओर जाती हैं।
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धूम-योनि  : पुं० [ब० स०] बादल, जिसकी उत्पत्ति धूएँ से मानी गई है।
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धूमर  : वि०=धूमिल।
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धूम-रज (स्)  : पुं० [ष० त०] १. घर का धुआँ। २. छतों और दीवारों में लगनेवाली धूएँ की कालिख।
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धूमरा  : वि०=धूमर (धूमिल)।
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धूमरी  : स्त्री० १. धूम। २. =धूम्र।a
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धूमल  : वि० [सं० धूम√ला (लेना)+क] धूएँ के रंग का। लाली लिये काले रंग का। वि०=धूमिल।a
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धूमला  : वि०=धूमिल।a
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धूमवान (वत्)  : वि० [सं० धूमवत्] [स्त्री० धूमवती] जिसमें या जहाँ धूआँ हो। धूएँ से युक्त।
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धूमसार  : पुं० [ष० त०] घर का धूआँ।
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धूमसी  : स्त्री० [सं०] उरद का आटा या चूर्ण। धुआँस।
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धूमांग  : वि० [धूम-अंग ब० स०] धुएँ के रंग के-से अंगोंवाला। पुं० शीशम का पेड़।
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धूमाक्ष  : वि० [धूम-अक्षि ब० स०, अच्] [स्त्री० धूमाक्षी] जिसकी आँखें धुएँ के रंग जैसी हों।
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धूमाग्नि  : स्त्री० [धूम-अग्नि मध्य० स०] ऐसी आग जिसमें धूआँ ही निकलता हो, लपट न उठती हो।
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धूमाभ  : वि० [धूम-आभा ब० स०] धूएँ के रंग जैसा।
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धूमायन  : पुं० [सं० धूम+क्यङ+ल्युट्—अन] १. धूआँ उठाना या उत्पन्न करना। २. किसी चीज को ऐसा रूप देना कि वह भाप बनकर उड़ने लगे। ३. गरमी। ताप।
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धूमायमान  : वि० [सं० धूम+क्यङ+शानच्, मुक्] १. जो धूएँ के रूप में हो। २. धूएँ से भरा हुआ। धूएँ से युक्त या व्याप्त।a
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धूमाली  : स्त्री० [सं० धूम+आली] आकाश में चारों ओर छाया हुआ धूआँ। उदा०—माली की मड़ई से उठ नभ के नीचे नभ सी धूमाली।
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धूमावती  : स्त्री० [सं० धूम+मतुप्—ङीप्-वत्व, दीर्घ] दस महाविद्याओं में से एक।
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धूमिका  : स्त्री० [सं० धूम+ठन—इक्, टाप्] कोहरा।
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धूमित  : वि० [सं० धूम+इतच्] १. धूएँ से ढका हुआ। २. जिसमें धूआँ लगा हो। पुं० तंत्र-शास्त्र में, सादे अक्षरों का मंत्र जो दूषित समझा जाता है।
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धूमिता  : स्त्री० [सं० धूमित+टाप्] वह दिशा जिसमें सूर्य पहले-पहल उन्मुख या प्रवृत्त होता हो।
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धूमिनी  : स्त्री० [सं० धूमिन्+ङीप्]=धूमी।
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धूमिल  : वि० [सं० धूम+इलच्] १. धूएँ के रंग का। लाली लिए काले रंग का। २. जिसमें इतना कम प्रकाश हो कि साफ दिखाई न पड़े। धुँधला। ३. मलिन। गंदा।
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धूमि (मिन्)  : वि० [सं० धूम+इनि] धूएँ से भरा हुआ। स्त्री० १. अजमीढ़ की एक पत्नी का नाम। २. अग्नि की एक जिह्वा का नाम।
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धूमोत्थ  : वि० [सं० धूम-उद√स्था (ठहरना)+क] धूएँ से निकला हुआ। पुं० नौसादर। वज्रक्षार।
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धूमोद्गार  : पुं० [धूम-उद्गार ष० त०] अजीर्ण या अपच के कारण आनेवाला धूएँ का-सा खट्टा डकार।
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धूमोपहत  : भू० कृ० [धूम-उपहत तृ० त०] धूएँ के फलस्वरूप जिसका गला घुट गया हो। पुं० एक तरह का रोग।
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धूमोर्णा  : स्त्री० [सं०] १. यम की पत्नी का नाम। २. मार्कण्डेय की पत्नी का नाम।
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धूम्या  : स्त्री० [सं० धूम+य—टाप्] १. धूम-पुंज। २. धूएँ का गहरा और घना बादल।
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धूम्याट  : पुं० [सं० धूम्या√अट (गति)+अच] एक पक्षी। भृंग।
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धूम्र  : वि० [सं० धूम√रा (देना)+क, पृषो० सिद्धि] धूएँ के रंग का। लाली लिए काले रंग का। पुं० १. धूएँ का या धूएँ का-सा रंग। लाली लिए काला रंग। २. मानिक लाल या धुँधलापन जो एक दोष माना गया है। ३. महादेव। शिव। ४. कार्तिकेय का एक अनुचर। ५. राम की सेना का एक भालू। ६. फलित ज्योतिष में एक प्रकार का योग। ७. मेढ़ा। 8.शिलारस नामक गंध द्रव्य।
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धूम्रक  : पुं० [सं० धूम्र√कै (प्रकाशित होना)+क] ऊँट।
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धूम्र-काँत  : पुं० [कर्म० स०] एक प्रकार का रत्न या नग।
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धूम्र-केतु  : पुं० [ब० स०] राजा भरत के एक पुत्र का नाम। (भागवत)
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धूम्र-केश  : पुं० [ब० स०] १. राजा पृथु का एक पुत्र। २. कृष्णाश्व का एक पुत्र, जो उसकी अर्चि नाम की स्त्री से उत्पन्न हुआ था। (भागवत)
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धूम्र-नेत्र  : पुं० [ब० स०] छत या दीवार में से धूआँ निकलने का छेद। धुआँरा। धूआँदान।
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धूम्र-पट  : पुं०=धूमपट।
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धूम्र-पत्रा  : स्त्री० [ब० स०, टाप्] एक प्रकार का पौधा जो आयुर्वेद में तीता, रुचिकारक, गरम, अग्निदीपक तथा शोथ, कृमि और खाँसी को दूर करनेवाला माना गया है। सुलभा। गृध्रपत्रा।
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धूम्र-पान  : कुं०=धूम-पान।
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धूम्र-मूलिका  : स्त्री० [ब० स०, कप्, टाप्, इत्व] शूली नामक तृण।
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धूम्र-लोचन  : पुं० [ब० स०] १. कबूतर। २. शुंभ दानव का एक सेनापति।
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धूम्र-वर्ण  : वि० [ब० स०] धूएँ के रंग का। ललाईपन लिए काला। धूमिल। पुं० उक्त प्रकार का रंग।
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धूम्रवर्णा  : स्त्री० [सं० धूभ्रवर्ण+टाप्] अग्नि की सात जिह्वाओं में से एक।
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धू्म्र-शूक  : पुं० [ब० स०] ऊँट।
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धूम्रा  : स्त्री० [धूभ्र+अच्—टाप्] एक प्रकार की ककड़ी।
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धूम्राक्ष  : वि० [धूभ्र-अक्षि ब० स०, अच] जिसकी आँखें धूएँ के रंग की हों। पुं० रावण का एक सेनापति।
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धूम्राट  : पुं० [सं० धूभ्र√अट् (गति)+अच्] धूम्याट पक्षी। भिंगराज।
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धूम्राभ  : पुं० [धूम्र-आभा ब० स०] १. वायु २. वायुमंडल।
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धूम्रार्चि (स्)  : स्त्री० [धूम्र-अर्चिस ब० स०] अग्नि की दस कलाओं में से एक।
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धूम्राश्व  : पुं० [धूम्र-अश्व ब० स०] इक्ष्वाकु वंशीय एक राजा।
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धूम्रिका  : स्त्री० [सं०धूम्रा+कन्—टाप्, हृस्व, इत्म] शीशम की तरह का एक प्रकार का पेड़।
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धूम्रीकरण  : पुं० [सं० धूम्र+च्वि; ईत्व√कृ (करना)+ल्युट्—अन] (रोग के कीटाणुओं से मुक्त करने के लिए या हवा की गंदगी दूर करने के लिए) कमरे आदि में सुगंधित धूप, संक्रमणनाशक वाष्प आदि प्रसारित करना। (फ्यूमिगेशन)
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धूर  : स्त्री० [सं० धुर] जमीन की एक नाप जो एक बिस्वांसी के बराबर होती है। बिस्वे का बीसवाँ भाग। स्त्री० [?] एक प्रकार की घास। स्त्री०=धूल।a अव्य०=धुर। पुं० [?] बादल।
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धूरकट  : पुं० दे० ‘धुरकुट’।
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धूरजटी  : पुं०=धूर्जटि।
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धूर-डाँगर  : पुं० [देश०] पशु, विशेषतः सींगोवाला पशु।
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धूरत  : वि०=धूर्त।a
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धूर-धान  : पुं०=धूल-धानी।
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धूर-धानी  : स्त्री०=धूल-धानी।a
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धूर-यात्रा  : स्त्री०=धूलियात्रा।a
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धूर-संझा  : स्त्री० [सं० धूलि+संध्या] गोधूलि का समय।
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धूरा  : पुं० [हिं० धूर] १. धूल। गर्द। २. महीन चूर्ण। बुकनी। ३. रोगी के हाथ-पैर ठंढे हो जाने पर गरम राख या सोंठ आदि के चूर्ण से वे अंग धीरे-धीरे मलने की क्रिया, जिससे हाथ-पैर में फिर से गरमाहट आ जाती है। क्रि० प्र०—करना—देना। ४. अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए की जाने वाली चापलूसी या मीठी-मीठी बातों से दिया जाने वाला भुलावा। क्रि० प्र०—करना।—देना।
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धूरि  : स्त्री०=धूल। उदा०—जब आवत संतोष धन, सब धन धूरि समान।—तुलसी।
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धूरि-क्षेत्र  : पुं० [सं० धूलि+क्षेत्र] जगत। संसार। उदा०—धूरि क्षेत्र में आइ कर्म करि हरिपद पावै।—नन्ददास।b
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धूरिया बेला  : पुं० [हिं० धूर+बेला] एक प्रकार का बेला (पौधा और फूल)।
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धूरिया-मलार  : पुं० [धूरिया ?+सं० मल्लार] सम्पूर्ण जाति का एक प्रकार का मल्लार जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं।
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धूरे  : अव्य० १. धौरे। २. धीरे।
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धूर्जटि  : पुं० [सं० धूर्-जटि ब० स०] शिव। महादेव।
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धूर्त  : वि० [सं०√धूर्व् (हिंसा)+तन्] [भाव० धूर्तता] १. जो कपट या छलपूर्ण आचरण करके अथवा चालाकी या दाँव-पेंच के द्वारा अपना काम इस प्रकार निकाल लेता हो कि लोगों को सहसा उसके वास्तविक स्वरूप का पता तक न चलने पाता हो। बहुत बड़ा चालाक। २. कपटी। छली। धोखेबाज। ३. दुष्ट। पाजी। पुं० १. साहित्य में, शठ नायक का एक भेद। २. जुआरी जो तरह-तरह के दाँव-पेंच करता है। ३. चोर नामक गंध-द्रव्य। ४. लोहे की मैल या मोरचा। ५. धतूरा। ६. विट् लवण।
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धूर्तक  : पुं० [सं० धूर्त+कन] १. जुआरी। २. गीदड़। ३. कौरव्य कुल का एक नाग।
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धूर्त-चरित  : पुं० [ष० त०] १. धूर्तों का चरित्र। २. [ब० स०] संकीर्ण नाटक का एक भेद।
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धूर्तता  : स्त्री० [सं० धूर्त+तल्—टाप्]धूर्त होने की अवस्था, गुण या भाव। दुष्ट उद्देश्य से की जाने वाली चालाकी।
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धूर्त-मानुषा  : स्त्री० [धूर्त=हिंसित-मानुष ब० स०, टाप्] रास्ना लता।
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धूर्त-रचना  : स्त्री० [ष० त०] छल-कपट।
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धूर्धर  : वि० [सं० धूर्-धर ष० त०] १. बोझा ढोनेवाला। भारवाही। २. दे० ‘धुरंधर’।
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धूर्य  : पुं० [सं०=धूर्य पृषो० सिद्धि] विष्णु।
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धूर्वह  : वि० [सं० धूर्—वह ष० त०, पृषो० दीर्घ ] १. भार वहन करनेवाला। २. कार्य का दायित्व अपने ऊपर लेनेवाला। पुं० बोझ ढोनेवाला पशु।
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धूर्वी  : स्त्री० [सं० धूर्√अज् (गति)+क्विप्, वी आदेश] रथ का अग्रभाग।
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धूल  : स्त्री० [सं० धूलि] १. सूखी मिट्टी के वे सूक्ष्म कण जो हवा या आँधी के समय वातावरण में उड़ते रहते हैं। गर्द। रज। जैसे—लड़के धूल उड़ाते हैं। क्रि० प्र०—उड़ना। मुहा०—(किसी जगह) धूल उड़ना या बरसना=ध्वस्त या नष्ट हो जाने के कारण या चहल-पहल न रहने के कारण बहुत उदासी छाना। तबाही या बरबादी के लक्षण स्पष्ट दिखाई देना। (किसी व्यक्ति की) धूल उड़ाना=(क) किसी की त्रुटियों, दोषों, बुराइयों आदि की खूब चर्चा करके उसे परम तुच्छ ठहराना। (ख) खूब उपहास करना। दिल्लगी उड़ाना। (किसी का) धूल उड़ाते या फाँकते फिरना=दुर्दशा भोगते हूए इधर-उधर मारे-मारे फिरना। धूल की रस्सी बटना=(क) बिना किसी आधार या तत्व के कोई बड़ा काम करने का प्रयत्न करना। (ख) अनहोनी या व्यर्थ की बात के लिए परिश्रम या प्रयत्न करना। (किसी के आगे) धूल चाटना=बहुत गिड़गिड़ाकर अपनी अधीनता या दीनता प्रकट करना। (जगह-जगह की) धूल छानना=किसी काम के लिए जगह-जगह दुर्दशा भोगते हुए या मारे-मारे फिरना। (किसी की) धूल झड़ना=मारे-पीटे जाने पर भी इस प्रकार ज्यों का त्यों रहना कि मानों कुछ हुआ ही न हो। (परिहास और व्यंग्य) जैसे—अच्छा जाने दो; तुम्हारे शरीर की धूल-झड़ गई। २. किसी वस्तु पर पड़े हुए उक्त कण। जैसे—कपड़े पर बहुत धूल पड़ी है। क्रि० प्र०—पड़ना। मुहा०—धूल झाड़कर अलग य चलता होना=अपमान, आघात आदि सहकर भी उसकी उपेक्षा करना। (किसी की) धूल झाड़ना= (क) (किसी को) मारना-पीटना। (विनोद) (ख) बहुत ही तुच्छ या हीनभाव से किसी की चापलूसी और सेवा-शुश्रूषा करना। (किसी बात पर) धूल डालना=(क) उपेक्ष्य या तुच्छ समझकर जाने देना। ध्यान न देना। (ख) अनुचित और निंदनीय समझकर किसी बुरी बात की चर्चा फैलने न देना जान—बूझकर छिपाने या दबाने का प्रयत्न करना। धूल फाँकना=(क) दुर्दशा भोगते हुए व्यर्थ का प्रयत्न करना। (ख) जान-बूझकर सरासर झूठ बोलना। (अपने) सिर पर धूल डालना=कोई अनुचित काम हो जाने पर बहुत पछताना और सिर धुनना। (किसी के) सिर पर धूल डालना=बहुत ही तुच्छ या हीन समझकर उपेक्षा करना या दूर हटाना। पद—पैरों की धूल=अत्यंत तूच्छ या हीन। परम उपेक्ष्य। जैसे—वह तो आपके पैरों की धूल है। ३. मिट्टी मुहा०—धूल में मिलना=(क) पूर्णतया नष्ट हो जाना कि नाम-निशान तक न रहे। (ख) चौपट हो जाना। ४. धूल के समान तुच्छ वस्तु। जैसे—इस कपड़े के सामने वह धूल है। क्रि० प्र०—समझना।
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धूलक  : पुं० [सं०√धू (काँपना)+लक] जहर। विष।
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धूल-कूप  : पुं० [सं०] हिम-नदी के तल पर कहीं-कहीं दिखाई देनेवाले वे गहरे गड्ढे जो कड़ी धूप पड़ने से बनते हैं और जिनमें ऊपर पड़ी हुई धूल समाकर नीचे बैठ जीती है। (डस्ट वेल)
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धूल-धक्कड़  : पुं० [हिं० धूल+धक्का] १. चारों ओर उड़नेवाली घूल। २. चारों ओर मचनेवाला निंदनीय उत्पात या उपद्रव। जैसे—चुनाव के समय हर जगह एक-सा धूल-धक्कड़ दिखाई देता था।
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धूल-धान  : पुं०=धूल-धानी।
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धूल-धानी  : स्त्री० [हिं० धूल+धान ?] १. गर्द या धूल का ढेर। २. चूर-चूर करके धूल की तरह बनाने की क्रिया या भाव। ३. ध्वंस। विनाश। ४. सर्वनाश।
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धूल-यात्रा  : स्त्री०=धूलि-यात्रा।
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धूला  : [देश०] टुकड़ा। खंड। कतरा।a पुं०=धूल।a
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धूलि  : स्त्री० [सं०√धू+लि] धूल। गर्द।
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धूलि-कदंब  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का कदंब का वृक्ष और उसका फल।
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धूलिका  : स्त्री० [सं० धूलि+कन्—टाप्] १. महीन जल-कणों की झड़ी। फुहार। २. कोहरा।
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धूलि-गुच्छक  : पुं० [ष० त०] अबीर-गुलाल आदि, जो होली में एक दूसरे पर डाले जाते हैं।
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धूलि-चित्र  : पुं० [मध्य० स०] वे आकृतियाँ या कोष्ठक, जो रंगों के चूर्ण जमीन पर भुरक कर बनाये जाते हैं। साँझी। (देखें)
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धूलि-धूसर  : वि०=धूलि-धूसरित।
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धूलि-धूसरित  : वि० [तृ० त०] धूल पड़ने के कारण जिसका रंग धूसर या मटमैला हो गया हो।
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धूलि-ध्वज  : पुं० [ब० स०] वायु। हवा।
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धूलि-पुष्पिका  : स्त्री० [ब० स०, कप्—टाप्, इत्व] केतकी।
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धूलि-यात्रा  : स्त्री० [मध्य० स० ?] किसी देवता के धाम में पहुँचने पर उसके मन्दिर में जाकर किया जानेवाला वह दर्शन जो रास्ते में पैरों पर पड़ी हुई धूल बिना धोये अर्थात् सीधे मन्दिर में पहुँचकर किया जाता है। (पैदल यात्री)
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धूलिया-पीर  : पुं० [हिं० धूल+पा० पीर] एक कल्पित पीर जिसका नाम बच्चे खेलों आदि में लिया करते हैं। जैसे—तुम्हें धूलिया-पीर की कसम है, वहाँ मत जाना।
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धूवाँ  : पुं०=धूआँ।
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धूसना  : स० [सं० ध्वंसन] १. खराब या निकम्मा करने के लिए कुचलना, दबाना या मलना-दलन या मर्दन करना। २. दे० ‘ठूसना’।
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धूसर  : वि० [सं०√धू+सरन्] १. धूल के रंग का। भूरे या मटमैले रंग का। खाकी। २. जिसमें धूल लगी या लिपटी हो। पुं० १. पीलापन लिये सफेद अर्थात भूरा या मटमैला रंग। २. गधा। ३. ऊँट। ४. कबूतर। ५. एक व्यापारिक जाति, जिसे कुछ लोग वैश्यों में और कुछ लोग ब्राह्मणों में मानते हैं। ढूसर।
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धूसरच्छदा  : स्त्री० [सं० ब० स०, टाप्] एक प्रकार का पौधा, जिसे बुहना या बोहना भी कहते हैं।
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धूसर-पत्रिका  : स्त्री० [सं० ब० स०, ङीष्+कन्, टाप् ह्रस्व] हाथीसूँड़ का पौधा।
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धूसरा  : वि० [सं० धूसर] [स्त्री० धूसरी] १. धूल के रंग का। मटमैला। खाकी। २. जिस पर धूल पड़ी या लगी हो। धूल से सना हुआ। स्त्री० [सं०] पांडुफली।
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धूसरित  : वि० [सं० धूसर+इतच्] १. धूल लगने के कारण जो मैला-कुचैला हो गया हो। धूल से लिपटा हुआ। २. भूरे या मटमैले रंग का।
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धूसरी  : स्त्री० [सं०] किन्नरियों का एक वर्ग।
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धूसला  : वि०=धूसरा।a
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धूस्तूर  : पुं० [सं०√धूस् (कान्ति)+क्विप्, √तूर् (शीघ्रता)+क, धूस्-तूर कर्म० स०] धतूरा।
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धूहा  : पुं० [हिं० ढूह] १. ढूह। २. बाँस पर टाँगी जानेवाली काली हाँड़ी या पुतला, जो खेतों में पक्षीयों को डराकर दूर रखने के लिये खड़ा किया जाता है।
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